Koyal Ai Chait Men Aane Vaali Koyal

Koyal Ai Chait Men Aane Vaali Koyal

कोयल

(अज़ीमुद्दीन अहमद)

 

ऐ चैत में आने वाली कोयल

मुतलक़ खुलता नहीं तिरा राज़

ताइर तुझ को कहे मिरा दिल

या जिस्म से ख़ाली कोई आवाज़

 

किस के ग़म में है तेरी कू कू

बतला है कौन तेरा दिलबर

फिरती जो डाल डाल है तू

किस को तू ढूँढती है आख़िर

 

जंगल जंगल ये तेरी परवाज़

आख़िर किस की तलाश में है

तुझ को है सोज़ से मगर साज़

कैसी पुर-दर्द है तिरी लय

 

ख़िल्क़त सोई पड़ी है और जब

सारे ताइर हैं आशियाँ में

तेरी पर उस घड़ी से हर शब

कटती है भोर तक फ़ुग़ाँ में

 

लेकिन नहीं दर्द-मंद इक तू

है तेरा शरीक एक नाशाद

तेरी है निस्फ़ शब से कू कू

उस की शब भर है आह-ओ-फ़रियाद

 

दिन भर तुझ को है आफ़ियत पर

उस को दम भर नहीं है राहत

दिन भर रहता है सख़्त मुज़्तर

शब भर उस पर है इक क़यामत

 

फिरती है तू मुल्क मुल्क इस पर

तुझ को इतना ग़म-ओ-अलम है

जा ही न सके जो घर से बाहर

उस पर कैसा बता सितम है

 

लेकिन ये जान कर कि तू भी

करती है किसी के ग़म में फ़रियाद

इस दर्द भरी सदा को तेरी

सुनता है पड़ा ‘अज़ीम’ नाशाद

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