मुख़ातिबत-ए-आशिक़ (अज़ीमुद्दीन अहमद) चाँद सी सूरत जो देखी जान के लाले पड़े ज़ुल्फ़ रुख़ पर यूँ थी बिखरी मन पे जों काले पड़े किस ग़ज़ब
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मुख़ातिबत-ए-आशिक़ (अज़ीमुद्दीन अहमद) चाँद सी सूरत जो देखी जान के लाले पड़े ज़ुल्फ़ रुख़ पर यूँ थी बिखरी मन पे जों काले पड़े किस ग़ज़ब