पयाम-ए-हस्ती (अज़ीमुद्दीन अहमद) तबस्सुम की हवस हो बर्क़ के आसार पैदा कर जो गर ये आरज़ू हो चश्म-ए-दरिया-बार पैदा कर मरज़ ही क्या मुदावा जिस
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पयाम-ए-हस्ती (अज़ीमुद्दीन अहमद) तबस्सुम की हवस हो बर्क़ के आसार पैदा कर जो गर ये आरज़ू हो चश्म-ए-दरिया-बार पैदा कर मरज़ ही क्या मुदावा जिस